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बेकली से मुझे राहत होगी
छेड़ दें आप इनायत होगी
वस्ल में उन के क़दम चूमेंगे
वो भी गर उन की इजाज़त होगी
बे-क़रारी के मज़े लूटेंगे
आज फिर दर्द की शिद्दत होगी
एक दिन खोल के जी रो लेंगे
ज़ब्त-ए-ग़म की जो इजाज़त होगी
क़िस्सा-ए-ग़म न कहूँगा 'हसरत'
जौर की उन के शिकायत होगी
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