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विदा किया तब कहा कि यह लाना वह लाना,
ग्वैड़े आया, और हाथ दोनों हैं ख़ाली;
सजी ख़ूब थी हाट, मगर मुश्किल था पाना
पैसों बिना। “जानती हो, मुझको ख़ुशहाली
जैसे यहाँ वहाँ भी न थी”— क्या यही कह दूँ।
कितनी ठेस लगेगी उसको। अपने मन में
क्या क्या सोचे बैठी होगी । कैसे चह दूँ
बाँध बात से। ऐसे भी मनुष्य हैं जन्मे
दुनिया में, जिनको दुर्लभ है कानी कौड़ी।
प्यार उन्हें भी मिलता है, सुख का कोलाहल
उन्हें नहीं सुन पड़ता है, विपत्ति ही दौड़ी
दौड़ी उन्हें भेंटती है, करती है विह्वल।
क्या दूँ क्या दूँ क्या दूँ क्या दूँ क्या दूँ क्या दूँ
अपनी पहुँच में कहाँ, क्या है, जो मैं ला दूँ।
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