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भाषा के साथ खेल सकते हो
(खेले भी हो ज़ार-ज़ार उसकी ध्वनियों और नुक्तों से)
क्या खेलोगे उससे भी---?
उस परछाईयों के बुने नृत्य से
साँसों की उस अन्यमनस्क माला से
सुगन्ध से बहके हुए उस झोंके से
जिसे सहेज नहीं सकती तुम्हारी पलकें
मालती के वे फीके गुलाबी फूल
नारंगी ग्रीवा से मुरझाते हुए वे पारिजात
जासोन के वे सुर्ख घने बिम्ब जो तुम्हे चूमकर डूब जाते हैं साँझ में
वह मत्स्या जो कन्या के भेस में तुम्हारे ममत्व को टँकार जाती है
वह देही जो तुम्हारी देह में किसी मर्त्य गीत को गुनगुनाती है
क्या खेलोगे उससे भी जिसे कभी-कभी कविता कह देते हो तुम?
भाषा से खेल सकते हो
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