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कलकत्ता: ३०० साल

Rajesh JoshiRajesh Joshi
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कलकत्ता: ३०० साल
शहर बसाते वक़्त
यह नहीं सोचा गया
कि बेचैन पीढियां
जन्म लेंगी यहाँ

शर बसते वक़्त
यह भी नहीं सोचा गया
कि बच्चे हो जायेंगे
बुतशिकन ...

मिस्त्रियों को


यह मालूम नहीं था
कि एक नस्ल का
पेट चीरा जाएगा
दो सौ अस्सी साल बाद

अब युवाओं से
किसी को ख़तरा नहीं है
किशोर कक्षाओं में जाते हैं
और शासक कहते हैं :
यह एक मरता हुआ शहर है।

 

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