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नहीं हैं नीम, पीपल और बड़ के
बड़े-बड़े पेड
देवदारु की तो
कथा ही दूर छूट गई
दूर-दूर तक
चिलचिलाती धूप और
लीलने को बढ़ा आता रेत का सागर
सुरसा की तरह मुँह फैलाए
इस मरुस्थल से लड़ रहा है
एक अकेला थूहर!
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