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कुछ ऐसे बीज थे जो गोदाम में पडे-पड़े
अकुलाते रह गए कि
हमें भी डाल दिया होता किसी क्यारी में
कोई हमें हाथ में उठाता
और खेत में उछाल कर फेंकता,
हम भी अँकुरा लेते
हम में होते नए पात
हम अपने आप को फ़सलों में बिखेर पाते
और हम फिर से बीज हो जाते।
उनके सपने दिवा स्वप्न बन कर रह गए।
कुछ बीज थे जो कूड़े में फेंक दिए गए
वे उसी में कुकरमुत्तों जैसे उग पड़े
जब तक वे देखना शुरू करते कोई सपना
तब तक नगरपालिका का वाहन आ कर
उखाड़ ले गया उन्हें।

कुछ ऐसे भी थे बीज
जिनका बीज होना ही बधिया दिया गया
प्रयोगशालाओं में
निर्वीर्य बने हुए वे बीज
फिर से बीज होना चाहते रह गए

मुश्किल ही होता है
बीज हो सकना।
उससे ज़्यादा मुश्किल होता है
बीज का अंकुर बनना—
अंकुर का शाखाओं में और पत्तों में विस्तार लेना।
चाहता है हर बीज
बोया जाना, अंकुराना, शाखाओं में पत्तों में, फ़सलों में लहलहाना,
सारे के सारे बीजों की कामनाएँ फल जाएँ
ऐसा हो नहीं पाता।

और उन बीजों का क्या
जो मन के कोने में पड़े रह गए?

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