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कोई दिल-लगी दिल लगाना नहीं है

Pandit Brij Mohan Dattatreya KaifiPandit Brij Mohan Dattatreya Kaifi
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कोई दिल-लगी दिल लगाना नहीं है
क़यामत है ये दिल का आना नहीं है

मनाएँ उन्हें वस्ल में किस तरह हम
ये रूठे का कोई मनाना नहीं है

है मंज़ूर उन्हंे इम्तिहाँ शौक़ दिल का
नज़ाकत का ख़ाली बहाना नहीं है

वफ़ा पर दग़ा सुलह में दुश्मनी है
भलाई का हरगिज़ ज़माना नहीं है

शब-ए-ग़म भी हो जाएगी इक दिन आख़िर
कभी इक रविश पर ज़माना नहीं है

है कू-ए-बुताँ बस घर उस का ही ‘कैफ़ी’
ज़माने में जिस को ठिकाना नहीं है

 

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