
मैं किसी शोख़ की गली में नहीं
ज़िंदगी मेरी ज़िंदगी में नहीं
हम वफ़ा की उमीद क्या रक्खें
किस में होगी जो आप ही में नहीं
कोई कैसा है कोई कैसा है
आदमिय्यत हर आदमी में नहीं
तज़्किरा ही वफ़ा का सुनता हूँ
ये किसी में है या किसी में नहीं
उस का मिलना है अपने खोने पर
फ़िल-हक़ीक़त ख़ुदा ख़ुदी में नहीं
किस से पूछूँ कि रात क्या गुज़री
अहल-ए-बज़्म अपने होश ही में नहीं
वो घटा आसमान पर उट्ठी
उज़्र अब मुझ को मय-कशी में नहीं
गुफ़्तुगू उन की दोस्ती में है
शक हमें उन की दुश्मनी में नहीं
है ख़ुदी और बे-ख़ुदी कुछ और
बे-ख़ुदी का मज़ा ख़ुदी में नहीं
कोई चिलमन उठाए बैठा है
कोई अपने हवास ही में नहीं
ग़ौर से देखिए तो सब कुछ है
कौन सी बात आदमी में नहीं
ये भी हो वो भी हो तो लुत्फ़ आए
कुछ नहीं लाग अगर लगी में नहीं
कौन सा वस्फ़ कौन सी ख़ूबी
हज़रत-ए-'नूह-नारवी' में नहीं
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments