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(एम० के लिए)
इन दिनों मैं अकसर
उस मुस्कान को याद करता हूँ
उस रहस्य-भरी मुस्कान को
जिसमें पिरोये होते थे असंख्य भाव
छुपे रहते थे अनगिनत न्योते
होंटों से शुरू हो कर
जो मुस्कान
आँखों तक आती थी
और देखने वालों को ताज़ादम कर जाती थी
दे जाती थी संख्यातीत सँदेसे
कलाकार चित्रित करते थे उस मुस्कान को
अपनी कृतियों में
कवि उसके गीत गाते थे
गायक उसके गिर्द अपने राग सजाते थे
लेकिन मरते थे सिर्फ़ आशिक़ उस मुस्कान पर
उस रहस्य-भरी मन्द स्मिति पर
केवल प्रेमीजन सर्वस्व लुटाते थे
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