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मैंने देखा

NagarjunNagarjun
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मैंने देखा :
दो शिखरों के अन्तराल वाले जँगल में
आग लगी है ...

बस अब ऊपर की मोड़ों से
आगे बढ़ने लगी सड़क पर
मैंने देखा :
धुआँ उठ रहा
घाटी वाले
खण्डित-मण्डित अन्तरिक्ष में
मैंने देखा : आग लगी है
दो शिखरों के अन्तराल वाले जँगल में ।

मैंने देखा : शिखरों पर
दस-दस त्रिकूट हैं
यहाँ-वहाँ पर चित्र-कूट हैं
दाएँ-बाएँ तलहटियों तक
फैले इनके जटा-जूट हैं
सूखे झरनों के निशान हैं
तीन पथों में बहने वाली
गँगा के महिमा-बखान हैं
दस झोपड़ियाँ, दो मकान हैं

इनकी आभा दमक रही है
इनका चूना चमक रहा है
इनके मालिक वे किसान हैं
जिनके लड़के मैदानों में
युग की डाँट-डपट सहते हैं
दफ़्तर में भी चुप रहते हैं ।

(5 मई 1985)

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