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ये महर है बे-मेहरी-ए-सय्याद

Muhammad IqbalMuhammad Iqbal
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ये महर है बे-मेहरी-ए-सय्याद का पर्दा

आई न मिरे काम मिरी ताज़ा-सफ़ीरी

रखने लगा मुरझाए हुए फूल क़फ़स में

शायद कि असीरों को गवारा हो असीरी

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