निया की महफ़िलों's image
3 min read

निया की महफ़िलों

Muhammad IqbalMuhammad Iqbal
0 Bookmarks 151 Reads0 Likes

दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब

क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो

शोरिश से भागता हूँ दिल ढूँडता है मेरा

ऐसा सुकूत जिस पर तक़रीर भी फ़िदा हो

मरता हूँ ख़ामुशी पर ये आरज़ू है मेरी

दामन में कोह के इक छोटा सा झोंपड़ा हो

आज़ाद फ़िक्र से हूँ उज़्लत में दिन गुज़ारूँ

दुनिया के ग़म का दिल से काँटा निकल गया हो

लज़्ज़त सरोद की हो चिड़ियों के चहचहों में

चश्मे की शोरिशों में बाजा सा बज रहा हो

गुल की कली चटक कर पैग़ाम दे किसी का

साग़र ज़रा सा गोया मुझ को जहाँ-नुमा हो

हो हाथ का सिरहाना सब्ज़े का हो बिछौना

शरमाए जिस से जल्वत ख़ल्वत में वो अदा हो

मानूस इस क़दर हो सूरत से मेरी बुलबुल

नन्हे से दिल में उस के खटका न कुछ मिरा हो

सफ़ बाँधे दोनों जानिब बूटे हरे हरे हों

नद्दी का साफ़ पानी तस्वीर ले रहा हो

हो दिल-फ़रेब ऐसा कोहसार का नज़ारा

पानी भी मौज बन कर उठ उठ के देखता हो

आग़ोश में ज़मीं की सोया हुआ हो सब्ज़ा

फिर फिर के झाड़ियों में पानी चमक रहा हो

पानी को छू रही हो झुक झुक के गुल की टहनी

जैसे हसीन कोई आईना देखता हो

मेहंदी लगाए सूरज जब शाम की दुल्हन को

सुर्ख़ी लिए सुनहरी हर फूल की क़बा हो

रातों को चलने वाले रह जाएँ थक के जिस दम

उम्मीद उन की मेरा टूटा हुआ दिया हो

बिजली चमक के उन को कुटिया मिरी दिखा दे

जब आसमाँ पे हर सू बादल घिरा हुआ हो

पिछले पहर की कोयल वो सुब्ह की मोअज़्ज़िन

मैं उस का हम-नवा हूँ वो मेरी हम-नवा हो

कानों पे हो न मेरे दैर ओ हरम का एहसाँ

रौज़न ही झोंपड़ी का मुझ को सहर-नुमा हो

फूलों को आए जिस दम शबनम वज़ू कराने

रोना मिरा वज़ू हो नाला मिरी दुआ हो

इस ख़ामुशी में जाएँ इतने बुलंद नाले

तारों के क़ाफ़िले को मेरी सदा दिरा हो

हर दर्दमंद दिल को रोना मिरा रुला दे

बेहोश जो पड़े हैं शायद उन्हें जगा दे

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts