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इश्क का जौके-नजारा

Majaz LakhnawiMajaz Lakhnawi
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(1)
इश्क का जौके-नजारा1 मुफ्त को बदनाम है,
हुस्न खुद बेताब है जलवा दिखाने के लिए।

(2)
कहते हैं मौत से बदतर है इन्तिजार,
मेरी तमाम उम्र कटी इन्तिजार में।

(3)
कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी,
कुछ मुझे भी खराब होना था।

(4)
खिजां के लूट से बर्बादिए-चमन तो हुई,
यकीन आमादे -फस्ले-बहार2 कम न हुआ।
(5)

मुझको यह आरजू है वह उठाएं नकाब3 खुद,
उनकी यह इल्तिजा4 तकाजा5 करे कोई।

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