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हुस्न को बे-हिजाब होना था

Majaz LakhnawiMajaz Lakhnawi
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हुस्न को बे-हिजाब होना था|
शौक़ को कामयाब होना था|

हिज्र में कैफ़-ए-इज़्तराब न पूछ,
ख़ून-ए-दिल भी शराब होना था|

तेरे जल्वों में घिर गया आख़िर,
ज़र्रे को आफ़ताब होना था|

कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी,
कुछ मुझे भी ख़राब होना था|

रात तारों का टूटना भी 'मज़ाज़',
बाइस-ए-इज़्तराब होना था|

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