प्रेम पथ's image
1 min read

प्रेम पथ

Kuber Nath RaiKuber Nath Rai
0 Bookmarks 98 Reads0 Likes


वृथा में इतना मत अभिमान करो
मेरा हिमशीतल अहंकार अब नहीं रहा
तुम्हारी सुधियों की वही फागुनी हवा
वसंता-तप में यह मन पिघला
जैसे वर्फ पिघली ओ उपल फूल
देखो न कभी का मैं
मन को काट-काट यमुना पिघला रहा
भूलो न अतीत को इस तरह
इतना मत मान करो
वृथा में इतना मत अभिमान करो।

मुक्तकेश सिरहाने झुके हुए
कोमल एक स्पर्श काफी है
पथ में दूर-दूर खड़ी रहो तुम
केवल एक पहचान दृष्टि काफी है
तिरछे नयन, मुख फेर कर ही सही
एक स्नेह अपांग काफी है
मेरी विनय को इतना लघु मत करो
मैं बहुत ही थक गया
अहं का संबल भी न रहा
तुम भी वृथा मत अभिमान करो।

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts