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नवल नवाब खानख़ाना जू तिहारी त्रास,
भागे देश पति धुनि सुनत निसान की।
गंग कहै तिनहूं की रानी रजधानी छाँड़ि,
फिरै बिललानी सुधि भूली खान-पान की।
तेऊ मिली करिन हरिन मृग बानरानी,
तिनहूं की भली भई रच्छा तहाँ प्रान की।
सची जानी करिन, भवानी जानी केहरनि,
मृगन कलानिधि, कपिन जानी जानकी॥
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