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चकित चकत्ता चौंकि चौंकि उठै बार बार

Kavi BhushanKavi Bhushan
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चकित चकत्ता चौंकि चौंकि उठै बार बार,
दिल्ली दहसति चितै चाहि करषति है.
बिलखि बदन बिलखत बिजैपुर पति,
फिरत फिरंगिन की नारी फरकति है.
थर थर काँपत क़ुतुब साहि गोलकुंडा,
हहरि हवस भूप भीर भरकति है.
राजा सिवराज के नगारन की धाक सुनि,
केते बादसाहन की छाती धरकति है.

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