0 Bookmarks 73 Reads0 Likes
गो ये ग़म है कि वो हबीब नहीं
पर ख़ुशी है कोई रक़ीब नहीं
क्यूँ न हों तिफ़्ल-ए-अश्क आवारा
कि मोअल्लिम नहीं अदीब नहीं
कल तसव्वुर में आई जो शब-ए-गोर
शब-ए-फ़ुर्क़त से वो मुहीब नहीं
हैं सवारी के साथ फ़रियादी
कोई और आप का नक़ीब नहीं
मुद्दतों से हूँ जानता हूँ वतन
दश्त-ए-ग़ुर्बत में मैं ग़रीब नहीं
तुझ से ऐ दिल ख़ुदा तो है अक़रब
ग़म नहीं बुत अगर क़रीब नहीं
जान क्यूँ कर बचेगी फ़ुर्क़त में
हैं अदू सैकड़ों हबीब नहीं
ज़िंदगानी मरज़ है मौत शिफ़ा
जुज़ अजल कोई अब तबीब नहीं
जीते जी पाऊँ दोस्त का दीदार
'नासिख़' ऐसे मिरे नसीब नहीं
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments