
0 Bookmarks 151 Reads0 Likes
बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद
कोई साज़िश छुपा रहा है चाँद
जाने किस की गली से निकला है
झेंपा झेंपा सा आ रहा है चाँद
कितना ग़ाज़ा लगाया है मुँह पर
धूल ही धूल उड़ा रहा है चाँद
कैसा बैठा है छुप के पत्तों में
बाग़बाँ को सता रहा है चाँद
सीधा-सादा उफ़ुक़ से निकला था
सर पे अब चढ़ता जा रहा है चाँद
छू के देखा तो गर्म था माथा
धूप में खेलता रहा है चाँद
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments