
0 Bookmarks 103 Reads0 Likes
एकलव्य से संवाद-2
हवा के हल्के झोकों से
हिल पत्तों की दरार से
तुमने देख लिया था मदरा मुण्डा
झुरमुटों में छिपे बाघ को
और हवा के गुज़र जाने के बाद
पत्तों की पुन: स्थिति से पहले ही
उस दरार से गुज़रे
तुम्हारी सधे तीर ने
बाघ का शिकार किया था
और तुम हुर्रा उठे थे--
'जोवार सिकारी बोंगा जोवार !’[1]
तुम्हारे शिकार को देख
एदेल और उनकी सहेलियाँ
हँडिय़ा का रस तैयार करते हुए
आज भी गाती हैं तुम्हारे स्वागत में गीत
'सेन्देरा कोड़ा को कपि जिलिब-जिलिबा ।‘[2]
तब भी तुम्हारे हाथों धनुष
ऐसे ही तनी थी।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments