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मंज़िल पे ध्यान हमने ज़रा भी अगर दिया

Aalok ShrivastavAalok Shrivastav
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मंज़िल पे ध्यान हमने ज़रा भी अगर दिया,
आकाश ने डगर को उजालों से भर दिया।

रुकने की भूल हार का कारण न बन सकी,
चलने की धुन ने राह को आसान कर दिया।

पीपल की छाँव बुझ गई, तालाब सड़ गए,
किसने ये मेरे गाँव पे एहसान कर दिया।

घर, खेत, गाय, बैल, रक़म अब कहाँ रहे,
जो कुछ था सब निकाल के फसलों में भर दिया।

मंडी ने लूट लीं जवाँ फसलें किसान की,
क़र्ज़े ने ख़ुदकुशी की तरफ़ ध्यान कर दिया।

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