जानता हूँ's image
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गिरकर उठा हूँ,अब उठकर चलना जानता हूँ,
पर्वत सी उद्विग्नता से  निकलना जानता हूं ।
मैं नहीं दरख़्त वो, जो विमुख हवा के झोंके से 
कैसे सम्हलना है आंधियों से,हरवक्त जानता हूँ ।
निशदिन फैला रहा चंदन सी महक चहुँओर,
बाँस के कारण उठी दावानल जानता हूँ ।
चल पड़ा हूँ राहगीर बनकर पूण्य की राह पर
पाप के कारण घरों के मैं हश्र जानता हूँ ।
जिनमें नह

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