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प्रतिपल वह श्रम करता है,
कभी नहीं वह थकता है,
ग्रीष्म, शीत, वर्षा को सह,
चूते छप्पर के नीचे रह,
हालत उसकी पहचानो तो,
एक दीया किसानों को।
जीवन के झंझावातों को,
सह लेता है हो नीरव,
परती खेती का वक्ष चीर,
परहित करता है परमवीर,
उसकी व्यथा को जानो तो,
एक दीया किसानों को।
फटे-पुराने पहन वसन,
अभिलाषा का करके हनन,
सघन क्षेत्र हो या नि
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