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विरक्त हुई तब मैं ये जानी,
परिवर्तन में सहभागिता मनुष्य की पुरानी!
हर पीढ़ी जीती है एक उदात्त नई कहानी,
विकास संग संरक्षित करना ज़रूरी है पानी!
अत्यधिक हो जाए जब कुदरत से मनमानी,
तभी क्यूं याद आए कैसे हमने सुधार को ठानी?
प्रदूषण से दहक उठीं हैं समस्त नदियां हमारी!
जलस्रोत के संतुलन हेतु ना नकारे हम ज़िम्मेदारी!
औद्योगिक क्रियायों में कितनी हुई तैयारी?
ताकि रोकें वो समुद्री जीवों में पल रही बीमारी,
सतत प्रयास की आस में हैं नर्मदा- कावेरी,
सिंधु - गंगा - ब्रह्मपुत्र जैसी उत्कृष्ट नदी प्रणाली!
प्रदूषण की बढ़ौतरी से रूठी हुईं है हरियाली,
संकेत देती उपजाऊ ज़मीन पड़ी जो बंजर - खाली,
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