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ओ मेरे प्रिय श्याम!

मोक्ष के खोलते तुम धाम,

अत्यंत निराले तुम्हारे नाम,

तुम मणि धारित कौस्तुभधराय,

वात्सल्य का सदैव हो अभिप्राय!

अर्जुन के बने सशक्त सलाहकार,

ना होने दिया अज्ञानता का प्रहार!

कितने अद्भुत हो तुम मेरे पार्थ!

सुदामा संग मित्रता में निस्वार्थ,

सहज ही करते हो आकर्षित,

मन उपासना से मेरा हो हर्षित!

आत्मबोध का हो सूक्ष्म प्रदर्शन,

हृदय में जब भी तुम्हारा दर्शन!

प्रेम को अभिव्यक्त करता पद्य,

या प्रखर बनाता गतिमान गद्य,

तुम्हारा जब भी पाऊं उल्लेख,

व्यापक नज़रिया तुम्हारा देख!

प्रगाढ़ होती उत्थान की लहर,

उम्मीद व जागृति लाती हर सहर!


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