रक्त-वर्ण's image
Share2 Bookmarks 56149 Reads13 Likes

ओझल हुई वो परछाई?

नामुमकिन जिसकी भरपाई,

किंतु निसर्ग का जादू करिश्माई,

भीतर अनूठा स्थायित्व वो समाई,

कल्पना को देती स्नेह से ललकार,

शीत में जैसे पाती के भिन्न प्रकार,

वसंत में फिर रंगीन गुलों की बहार,

ग्रीष्म में नमी को लगता रही पुकार!

शरद ऋतु में खनकती मधुर झंकार,

रक्त-वर्ण पाती का परिवर्तित आकार,

नित सामंजस्य का

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts