रक्त-वर्ण's image
Share2 Bookmarks 195 Reads13 Likes

ओझल हुई वो परछाई?

नामुमकिन जिसकी भरपाई,

किंतु निसर्ग का जादू करिश्माई,

भीतर अनूठा स्थायित्व वो समाई,

कल्पना को देती स्नेह से ललकार,

शीत में जैसे पाती के भिन्न प्रकार,

वसंत में फिर रंगीन गुलों की बहार,

ग्रीष्म में नमी को लगता रही पुकार!

शरद ऋतु में खनकती मधुर झंकार,

रक्त-वर्ण पाती का परिवर्तित आकार,

नित सामंजस्य का प्रेमपूर्ण सिलसिला,

लुप्त करे हृदय से हरेक शिकवा-गिला,

सहर दौरान निसर्ग की जागृति असीम,

मानो उभरता प्रभु का सूर्य संग प्रतीम,

किरणों से बिखरता सुर्ख सा ओज,

यूंही हो जाती सुकून की सुखद खोज।


- यति


"God is Great! "


❤️




No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts