ओ आदर्श कवि!'s image
Share4 Bookmarks 61684 Reads18 Likes

ओ आदर्श कवि!


अपनी कला में माना तुम निपुण,

कई दफा बने तुम समाज का दर्पण,

जागरूक नागरिक होने का तुम पर दायित्व!

विचार अंकुरण का खोजते शोध से अस्तित्व,

कभी करते अपनी तलवारनुमा कलम से वार,

गज़ब का पाया कलम सरीखा तुमने हथियार!


ओ आदर्श कवि!


कभी ठहर जाते आंककर खुदको कम,

कुछ देर भले आंखें कर लेते अपनी नम,

लिखते मग्न होकर,कभी प्रेम में डूबकर,

बुनते रचनाओं को शब्द व भाव चुनकर!

ना सोचते कभी कितनी तुम्हें जगत में मोहलत,

जिंदगी से मिली तुम्हें संजो सकने की दौलत!


ओ आदर्श कवि!


तुम बचपना भी क्या खूब तरह से दर्श

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts