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मैं सोचूं , सोचूं...ऐसा क्या सोचूं!
अपने अंदर क्या अनोखा खोजूं?
जो हुनर कहलाए मेरा!
जो दर्द सहलाएं मेरा!
जीवन का अर्थ याद दिलाए मुझे,
सुलझन निष्पक्ष होकर मिल जाएं मुझे!
कैसे अपनी असुरक्षा को जड़ से समाप्त कर लूं,
कैसे अपने भीतर दिव्य सा प्रकाश व्याप्त कर लूं,
जो अंधकार से रखे मुझे मुक्त,
स्वस्थ्य जिज्ञासा से रहूं मैं युक्त,
कैसे हर दिन खुदको समझाऊं,
क्या अनोखा फिर से खुदको बतलाऊँ!
यादों के भंवर से शायद जब निकल पाऊं,
तभी कुछ धैर्य विकट परिस्थिति में भी रख पाऊं।
- यति
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