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मैं सोचूं , सोचूं...ऐसा क्या सोचूं!

अपने अंदर क्या अनोखा खोजूं?

जो हुनर कहलाए मेरा!

जो दर्द सहलाएं मेरा!

जीवन का अर्थ याद दिलाए मुझे,

सुलझन निष्पक्ष होकर मिल जाएं मुझे!

कैसे अपनी असुरक्षा को जड़ से समाप्त कर लूं,

कैसे अपने भीतर दिव्य सा प्रक

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