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मनोहर पर्व आया भाद्रपद के मास,
गजानना के लिए बनाए हमने मोदक खास!
मंगलमूर्ति की छवि कितनी निराली,
मन मुदित हो उठता सजाते हुए पूजा की थाली!
आज घर में उल्लसित हैं प्रत्येक जन!
ब्रह्म मुहूर्त में जागकर सबने किया स्नान से निर्मल तन!
इंतज़ार बप्पा के पुनः आगमन का था जब से हुआ गतवर्ष विसर्जन!
सुख, समृद्धि और सहजता का वरदमुर्तय की कृपा से अतुल्य अर्जन,
बाहर हो रही मेघों की गर्जन,
लाई मैं पुष्प श्रृंगार और निवेदिता के लिए दर्जन!
पुष्प भी प्रतीत होते मानो उत्सुक अलंकरण हेतु,
सौंदर्य से सुसज्जित शालीन संस्कृति में प्रेम ही एक सेतु!
बप्पा के आने से खुशियां हैं चारो ओर,
सम्मलित हैं सब आरती में होकर भाव विभोर!
- यति
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