
एक दुर्लभ उपाय!
एक सुलभ सी राय,
खुदसे प्रेम अनोखा उपहार!
प्रत्येक दिन मानो त्यौहार,
खुशियों की रोज़ नन्ही बौछार,
खुदको गम से लिया जब संवार,
तो न रही कोई जूझ नागवार!
सब बातों का यही सरल सार,
खुदको जानने से ही भवसागर पार!
खुलेंगे सुषुम्ना के समस्त द्वार,
हृदय आत्मीयता लिए पधार,
होगा समस्त जग का उद्धार,
शांत होगी हर शिकायत निराधार,
इस प्रक्रिया में न मायने रखती रफ्तार!
मन को मिलेगी नई उर्मिल उमंग,
जिंदगी में घुलता पावन पीला रंग!
खुदका मनोरंजन हो जाता खुदके संग,
प्रफुल्लित देख लोग रह जाते ज़रा दंग,
मुक्त हुई जब से छोड़ी निरर्थक जंग!
आत्मा से जारी हुआ मन का प्रेम प्रसंग,
प्रगति के अवसर होते स्वत: उत्पन्न,
मानो पंखुड़ियां कली से हुई प्रसन्न!
तभी यूं खिला हो सुंदर सुमन,
हुआ सभी कटु यादों का दमन,
आत्मा को मिला मेरी दिव्य स्पंदन,
जैसे धरती को हवा दे रही चुम्बन।
- यति
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