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चांदनी की चमक,
उसकी आंखों में झलकती ललक!
वो अंधियारों की मोहताज़ नहीं,
उसकी सीरत को शोषित करें ऐसी कोई जमात नहीं,
कल्पना बड़ी सुखद करती हैं!
अपनी चेतना से सिर्फ प्यार को चुनती हैं,
चांद का प्रतिबिंब पड़ता जैसे कहीं दूर
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