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चांदनी की चमक,
उसकी आंखों में झलकती ललक!
वो अंधियारों की मोहताज़ नहीं,
उसकी सीरत को शोषित करें ऐसी कोई जमात नहीं,
कल्पना बड़ी सुखद करती हैं!
अपनी चेतना से सिर्फ प्यार को चुनती हैं,
चांद का प्रतिबिंब पड़ता जैसे कहीं दूर समुंदर,
जोश से उत्तपन्न विशृंखलता भी उसके अंदर!
रोज़ अपने सपनों की खातिर कुछ करती हैं,
प्रेरणा प्रतिदिन उसके संग रहती हैं,
सबक सयाने हैं उसके,प्यारे अफसानें भी उसके!
पत्तों की तरह दरख़्त से रोज़ कुछ पृथक हो जाते हैं।
- यति
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