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नज़्म- मोहब्बत क्या है 

मोहब्बत क्या है शायद बदन को पाने का कोई बहाना है 
मोहब्बत शायरों के झूठे क़िस्सों का ठिकाना है 

मोहब्बत में बदन पाना ज़रूरी भी नहीं होता 
मोहब्बत तो बदन की हद से परे है और हवस की क्यारी में उगता हुआ इक फूल होती है 
इसे महबूब-ए-जाँ से कोई मतलब नहीं होता 
मोहब्बत तो ख़ुद ही महबूब होती है 
मोहब्बत तो फ़क़त एहसास-ए-क़ुर्ब होती है 
ये वो आग है जो तन्हा सीनों में दबी होती है 
मोहब्बत दिल मकीनों में किसी एहसास की तरह बसी होती है 

मोहब्बत ख़्वाबों से आँखों में उतर आती है 
मोहब्बत सीनों में अजब इल्हाम लाती है 
मोहब्बत तो तसव्वुर है जो ज़ेहनों पे गुमाँ लाती है 
मोहब्बत लफ़्ज़ बन के ग़ज़लों में उभर जाती है 

मोहब्बत ख़ूँ कब माँगती है 
मोहब्बत तो सुकूँ चाहती है 
मोहब्बत जुनूँ भी नहीं है कोई 
मोहब्बत अंदाज़-ए-फ़ुसूँ चाहती है 

मोहब्बत आग है 
मोहब्बत राग है 
मोहब्बत अँधेरा जंगल है 
मोहब्बत सहराओं का संदल है 

मोहब्बत गहरे पानी में गोते लगाती मछलियों का मगर है 
मोहब्बत जलती बुझती शमाओं पे परवानों का बसर है 

मोहब्बत झरनों से बहता पानी है जो क़ाबू नहीं पा सकता 
मोहब्बत वो जंगल है जहाँ इंसान अपनी मंज़िल नहीं ला सकता 

मोहब्बत क़ब्रों पे उगती हरी पत्तियाँ हैं 
मोहब्बत वीराने में जलती मोमबत्तियाँ हैं 

मोहब्बत देने दिलाने के रिवाजों से जुदा है 
मोहब्बत के क़लंदरों को मोहब्बत ही ख़ुदा है 

मोहब्बत अफ़साना-ए-दहर है 
मोहब्बत ख़ुदाओं का क़हर है 
मोहब्बत नागिनों का ज़हर है 
मोहब्बत तो बस बे-बहर है 

मोहब्बत वीरान जंगलों का दुख है 
मोहब्बत कुँवारी लड़कियों का दुख है 
मोहब्बत परिंदो का दुख है 
ये मयखाने के रिंदो का दुख है 
मोहब्बत तन्हा सफ़र है 
मुसाफ़िर की रह-गुज़र है 

कोई सोचे मोहब्बत को तो क्या सोचे 
किसी वीराने में जलता दिया सोचे 
मोहब्बत तो किसी का भी वजूद-ए-जाँ नहीं देखे 
यहाँ बंदा ख़ुदा का क्या ख़ुदी का भी नहीं सोचे

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