
क्या मैं एक क़ैद में हु?,
एक छोटा सा कमरा जिसमें हम कुछ और जिवित परिचित अपरिचित,
किंचित डरे हुए, किंचित उलझन में,
मन में महज़ एक सवाल कि कब मिल पायेंगे अपनों से,
एक छटपटाहट एक मजबूरी कुछ ना कर पाने की
और फिर सब को चीरता हुआ एक प्रश्न मन में
क्या मैं एक क़ैद में हुँ?
कल हम कुछ जिवित परिचित अपरिचित निकले थे
एक उम्मीद में कि कहीं कुछ हो जाये कोई रास्ता दिखे
पता लगा कि दुरस्थ से परवाज़ अपनों को ला रहीं है अपनों से मिलनेसो एक उम्मीद हम कुछ जिवित परिचितों अपरिचितों को भी लगी
इंतज़ार किया पर जब कुछ नहीं हुआतो फिर वही प्रश्न उठा मन में
क्या मैं एक क़ैद में हु?,
युँ तो अकेले नहीं हैं हम कुछ और जिवित परिचित अपरिचित भी हैं यहाँ,
पर फिर भी अपनों से दूर बहुत अकेले हैं हम
सब हैं डरे डरे से भुख से व्याकुल
सोचते हैं कि जब मरना ही है तो क्युं न अपनों के सामने
पर लगता है कि हर ओर कपाट बंद हैं
आज एक नई सुबह हुई पर हमने खुद को उन्ही जिवित परिचितों अपरिचितों के बीच पाया
सब डरे हुए एक उलझन से घिरे हुए
अपने आप से वही प्रश्न करते हुए
क्या मैं एक क़ैद में हु?
-- विश्वजीत २०।४।२०
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