एक तन्हाई है जिससे रिश्तेदारी है,
जिंदगी जी ही नहीं, बस गुज़ारी है।
न जाने क्या नशा है उसकी बातों में,
जाम उठाया नहीं मगर खुमारी है।
मर रहा हूं अंदर से उसकी चाहत में,
तबीब कहते है को
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