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मैं सच हुं मेरा लंबा सफर है
झुठ का हर गली में घर है।
कल उसने नियत को बेचा,
आज इज़्जत भी दांव पर है।
कल शहर में बाजार था एक,
आज बाज़ार ही शहर है।
सुना है उसे फांसी लगेगी,
ये अच्छे
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