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किस्सा है बहुत खूब सबके साथ उसका होते जाना,
जन्मना बड़ों का दिखा करतब बच्चों सा होते जाना,
गलत था गर सही सही होगा गलत ये तय है तब तो,
बुतों का भगवान व कुछ इंसानों का बुत होते जाना,
चला था जानने मुकाम वो राह जाने किस दिशा की,
राह का मुकाम व हर मुकाम का सरे राह होते जाना,
पाबंदियों का इश्क परवान चढ़ा है गुस्ताखों से अब
पाबंद था होना जहाँ वहाँ गुस्ताखियों का होते जाना,
धरतीं की तड़प का कुछ तो रिश्ता होगा आसमाँ से,
आसान नहीं चुपचाप तड़पन का आसमाँ होते जाना,
मासूमियत को हुआ नहीं अहसास मायूसी का कभी,
है रिवायत अब हैवानियत का मासूमियत होते जाना,
महज इत्तेफ़ाक नहीं शाम ढ़लते ही उसका यूँ जाना,
उससे ही सहर का आना गुजर फिर रात होते जाना,
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