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आत्म -परिचय - विवेक मिश्र

विवेक मिश्रविवेक मिश्र February 19, 2022
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कौन कहता है कि ज़माना हुआ,

खोटा सिक्का हूँ अब खरा नहीं हूँ

टाँग लो उम्मींदो के तुम सितारे,

आसमाँ हूँ अभी तक भरा नहीं हूँ


यकीं करना मेरा ज्यों ही उसने छुआ,

बोला ये मन युवा हूँ , ज़रा नहीं हूँ

मेरी अर्थी उठाने के यूँ मत करो इशारे,

ज़िंदा हूँ अभी तक, मरा नहीं हूँ


दामन में सम्हाले आज भी उसकी दुआ,

थक गया हूँ शायद , पर डरा नहीं हूँ

हौसलों को छेड़ने वालों , सम्हालो किनारे

समुंदर हूँ अभी तक, धरा नहीं हूँ

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