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हे नारी!
हे नारी ! प्रणाम मेरा स्वीकार करो
हे नारी इस काल उम्र की चंचलता से निकलकर गगन को प्रणिपात करो
तुम्हारा ऐसा निज रूप से घबराना तुमको सुशोभित नही दे पायेगा
तुम्हारे हाथ में नाउम्मीदी की मशाल से अर्जित लाभ किसी काम ना आएगा
तुम इस आँचल के बंधन को तोड़कर अप्रितम लहराओ
चाहे आंधी हो या तूफ़ान तुम्हे उन्नति के शिखर तक निरंतर कदम बढ़ाओ
हे नारी तुम विजय ध्वजारोहण की
पूरक हो
इस समाज को अन्धड़ सोच वालो से मुक्त करवाओ ।
इन सपेरों से आलिंगन मत करना ये अभी तो तुम्हारा
ध्यान चाहेंगे
बाद में यही तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठाकर तुम्हे नग्न नचाएंगे
हे नारी शक्ति तुमको नमस्कृत है मेरा हृदय और शीश ,
यथासंभव प्रयास करना और बनाये रखना इस हिंदी के बेटे पर अपना आशीष ।
By :- Vishwas Singhal
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