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हे नारी!
हे नारी ! प्रणाम मेरा स्वीकार करो
हे नारी इस काल उम्र की चंचलता से निकलकर गगन को प्रणिपात करो
तुम्हारा ऐसा निज रूप से घबराना तुमको सुशोभित नही दे पायेगा
तुम्हारे हाथ में नाउम्मीदी की मशाल से अर्जित लाभ किसी काम ना आएगा
तुम इस आँचल के बंधन को तोड़कर अप्रितम लहराओ
चाहे आंधी हो या तूफ़ान तुम्हे उन्नति के शिखर तक निरंतर कदम बढ़ाओ
हे नारी तुम
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