
आज क्या लिखूं? कुछ सूझा ही नहीं!
तुम्हारी तरह यहाँ कोई दूजा ही नहीं!!
सोचा! चुराकर लिख दूँ कुछ पंक्तियाँ!
उसमे कह दूँ तुम्हें पेड़, फूल पत्तियाँ!!
आज के दिन तुम आये इस जहाँ में!
उस वक्त पता नहीं गुम था कहाँ मैं?
तुमने आकर मेरे जीवन को पूरा किया!
जिम्मेदारियों को मेरी अधूरा किया!!
ऊपरवाले ने कोई तीसरा नहीं दिया!
शायद हमारे प्यार को और बढ़ा दिया!!
हमें अपनी ज़िन्दगी ऐसे ही बढ़ाना है!
एक दूसरे को हाथ पकड़कर चलाना है!!
दुनिया की भीड़ में हम दोनों अकेले हैं!
जैसे भी हो एक दूसरे को झेले हैँ!!
कोई फ़र्क़ किसी को इस बात का पड़ता नहीं!
बिगड़ता है कुछ या कुछ बिगड़ता नहीं!!
जो दिल में आ रहा है कलम लिख रही है!
कहीं कहीं उसमे भी त्रुटि दिख रही है!!
माफ़ करना अगर कुछ गलत लिख दिया हो!
किसी भी तरह तुम्हारा दिल दुखा दिया हो!
क्योंकि क्या लिखूं? कुछ सूझा ही नहीं!
तुम्हारे जैसा यहाँ कोई दूजा ही नहीं!!
विरेश✍
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