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ना ना माँ, ना ना बाबा, वो मैं नहीं हूँ
वो कौन हैं खबरें जिनकी छपती अखबारों में
वो कौन हैं होते जिनके चर्चे खाट चौबारों में
जिनके कारनामें मिसाल बन जाती कानूनों की
जिनकी हरकतों से रौशनी तेज़ होती वकीलों की दुकानों की
वो मुजरिम, वो गुनेहगार, वो खुरापाती दिमाग किसका है
वो जिसका निशाँ मिटा दिया गया वो सुराग किसका है
घबराना नहीं तुम वो खानदान का कलंक में नहीं हूँ
ना ना माँ, ना ना बाबा, वो मैं नहीं हूँ
वो जो थोड़े से पैसों के लिए कर दे सौदा ज़मीर का
वो जो दोस्त को थमा दे ज़हरीला प्याला क्षीर का
वो जो दंतहीन दिखे पर निकले अंत में साँप आस्तीन का
वो जो कभी तो बहरूपिया बन जाये या लगे मेहजबीन सा
वो जो लिपट जाए वृक्ष चन्दन से विषैला भुजंग सा
वो जो छिप जाए धूप भरी
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