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हमारे नैन अब थकने लगे हैं
हम उनकी राह जो तकने लगे हैं
जवानी खत्म होती जा रही है
हमारे बाल अब पकने लगे हैं
इशक़ तो मानो लाइलाज ठहरा
दवा क्यों साथ फिर रखने लगे हैं
ये जग जब हो गया है बेस्वादी
नमक हम इश्क़ का चखने लगे हैं
सफ़र का अब यही अंजाम समझो
हमारे पैर अब थकने लगे हैं
दिलासा देकर उनके लौटने का
हम अपने आप को ठगने लगे हैं
हमें भी वो जरा बीमार हैं दिखते
दीवाने हम भी तो लगने लगे हैं
~विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar / GHAZAL
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