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ख़ामोश ज़ुबाँ को सब बीमार समझते हैं
हरक़त ना करो तो सब दीवार समझते हैं
हम हैं कि साथ उनके चलना हैं उम्र भर और
वो हैं कि मोहब्बत को खिलवाड़ समझते हैं
उनके "ना" में भी समझता हूँ मैं सहमत
मेरी " हाँ" को भी जो इनकार समझते हैं
ख़ौफ का साया है इस तरह से छाया कि
उनके बेलन को भी हम तलवार समझते हैं
अपने दर्द को हमने कागज़ पे उतारा है
और आप हैं कि हमको फ़नकार समझते हैं
~विनीत सिंह शायर
VINIT SINGH SHAYAR
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