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आना नहीं था फिर क्यूँ यूँ ही आती है
कुछ तरह से भी वो प्यार जताती है
हम को देख के कमरे में वो चली गई
सामने फिर झुमके में वापस आती है
हमको मजनू बोल बोल के चिढ़ा रही है
ना जाने सखियों को क्या बताती है
रहते हैं खामोश वैसे तो महफ़िल में
वरना मेरी ग़ज़लों पर झूमीं जाती है
ज़ालिम दुनियाँ वालों से छुप छुपकर
हर रात उनकी फोटो चूमी जाती है
सामने सबके हाथ पकड़ के चलती है
ना जाने इतना हिम्मत कैसे लाती है
उनसे मिलने जाए इतनी हिम्मत नहीं
सपनों में ही दुनियाँ घूमी जाती है
हम ने मैय्यत समझ के जो इग्नोर किया
सामने जब देखा तो वो बाराती है
~विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar
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