
अब कभी मैं सोचता हूँ, मैंने तुझमें ऐसा क्या देक्खा था,
उस मंज़र से डर लगता है जैसे कोई हादसा देक्खा था।
अब राबता मेरा ख़ुद ही से है
नफ़रत भी ख़ुद से करता हूँ
बस तेरी नज़र तक था सफ़र मेरा लेकिन
अब आवारा सा मैं फिरता हूँ
तलाशता हूँ जो कुछ खोया था मैंने
कभी कभी तो आँसू भी बहा देता हूँ
कभी तो दिन भर तुम्हारा खयाल नहीं आता
कभी पूरी रात तुम पर लिखा लेता हूँ।
कभी सोचता हूँ अपना तो ऐसा खास रिश्ता रहा ही नहीं
तुमने भी मेरे मन मुताबिक कभी कुछ कहा ही नहीं
छोड़ो रहने दो रिश्ते की बात नहीं बीच में नहीं लाते हैं
तुम्हें भी पता है इस बात पर कितना कुछ हो जाता है
किसको बताऊँ ये दुःख दर्द जो अंदर लेके घूमता हूँ
ना जाने क्या मसला है मेरा कोई भी नज़दीक नहीं हो पाता है
चलो कुछ बातें थीं जो तुमसे पूछना चाहता था, पूछ लूँ?
वो नया साल बेहद रंगीन था न जिसमें हम तुम मिले थे,
ये नया साल कोई साल है, खैर ये बताओ कैसे तुम्हारे हाल है,
तुम्हारे कंगन अब भी खनकते हैं क्या, वो बाली अब चमकती है क्या, और वो डिंपल छोड़ो जाने दो
उम्र भर ख़तम नहीं होने वाले मेरे तुमसे बहुत सवाल है।
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