दशहरा के मंत्र
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा-देखि बिभीषन भयउ अधीरा।।
अधिक प्रीति मन भा संदेहा-बंदि चरन कह सहित सनेहा।।
रावण को रथ और श्रीराम को पैदल देखकर बिभीषन अधीर हो गए और प्रभु से स्नेह अधिक होने पर उनके मन में संदेह आ गया कि प्रभु कैसे रावण का मुकाबल करेंगे। श्रीराम के चरणों की वंदना कर वो कहने लगे।
नाथ न रथ नहि तन पद त्राना-केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥ सुनहु सखा कह कृपानिधाना-जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥
हे नाथ आपके पास न रथ है, न शरीर की रक्षा करने वाला कवच और पैरों में पादुकाएं हैं, इस तरह से रावण जैसे बलवान वीर पर जीत कैसे प्राप्त हो पाएगी? कृपानिधान प्रभु राम बोले- हे सखा सुनो, जिससे जय होती है, वह रथ ये नहीं कोई दूसरा ही है॥
सौरज धीरज तेहि रथ चाका-सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका ॥
बल बिबेक दम परहित घोरे-छमा कृपा समता रजु जोरे ॥
इस चौपाई में श्रीराम ने उस रथ के बारे में बताया है जिससे जीत हासिल की जाती है। धैर्य और शौर्य उस रथ के पहिए हैं। सदाचार और सत्य उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं। विवेक, बल, इंद्रियों को वश में करने की शक्ति और परोपकार ये चारों उसके अश्व हैं। ये क्षमा, दया और समता रूपी डोरी के जरिए रथ में जोड़े गए हैं।
ईस भजनु सारथी सुजाना-बिरति चर्म संतोष कृपाना ॥
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा-बर बिग्यान कठिन कोदंडा ॥
इस चौपाई में प्रभु ने सारथी
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