
Share0 Bookmarks 34 Reads0 Likes
कविताएं छपवाने के लिए चाहिए तो बस थोड़ी बहुत चाटुकारिता और संपादक के जूते को चाटने भर की हिम्मत
छपने लायक कविताएं सिर्फ जनेऊ पहन के ही लिखी जा सकती है
गाय भैंस चराने वाले लोग
चाम छीलने वाले लोग
कपड़ा धोने वाले लोग
भुजा भुजने वाले
जनेऊ न पहनने वाले लोग
सिर्फ चुटकुला लिखते है
कम से कम संपादक महोदय का यहीं मानना है
वे करते है दावा
सबसे बड़ा बुद्धिजीवी होने का
वे लिख देंगे किताबें
जातिवाद पर,पूंजीवाद पर
खोज लेंगे अपने वर्ण का अर्जुन
इनके अर्जुन है महा थेथर
चापलूसी में है बेहतर
तुम्हारे विचारों की धारा पर थूकेगी दुनियां
तुम्हे हज़ार लानत ।
© विकास गोंड
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments