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सभाएं आयोजित हुईं हैं लोगों का भीड़ उमड़ी हैं ज्वारभाटा की तरह, मैं भी खड़ा हूं इसी भीड़ में और तालियां बजाने की तैयारियां कर रहा हूं! जैसे सब बजा रहे हैं, ठीक वैसे ही! लेकिन इसी में एक आदमी खड़ा हैं, और संघर्ष कर रहा हैं, एक अशहाय नाविक की तरह! उसका संघर्ष पेट भरने का संघर्ष है , अपना, अपने बच्चों का, और पूरे परिवार का... एक मजदूर अच्छा पिता नहीं बन पाया पूरे जीवन भर, क्योंकि उसके बच्चों को लगता है पापा हमारे लिए कुछ नहीं किए... एक मज
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