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सपनों की जिस चादर को ओढ़कर बिताया था बचपन मैने
आज उसको पंख बनाकर सारा आसमां छू आया हूं मैं
हसरतों से मैं ताका करता था जिस आसमां को कभी
उसके आंचल से लिपटकर हवाओं में तैर आया हूं मैं
वो ख्वाब जो लौट लौट आते थे अधमुंदी पलकों पे मेरी
ज़हे नसीब मेरा कि उन्हें आज हकीकत बना पाया हूं मैं
मेरे सारे वो सपने, वो ख्वाब जो हकीकत बने हैं आज
और पलकों में भी सजें, अब ये नया ख्वाब संजो लाया हूं मैं
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