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यूं तो हर रोज दस्तक दे जाती हैं यादें तेरी
तुम भी किसी रोज यूं ही दस्तक दे जाना
यूं तो इंतेहा नहीं तुम्हारी बेरुखी की कोई
हो सके तो रुख मेरे घर का करते जाना
महफिलों से जब भी मिले फुर्सत तुम्हें
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