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मेरी जीवनसंगिनी, मैं तुम ,तुम हम परिणय सूत्र में बंध एक साथ रखे कदम .
मिलना हमें पूरा कर गया जीवन में रस भर गया विचार हमारे अपने थे संस्कार हमारे अपने थे व्यक्तित्व का अनोखापन अपना था घर बसाना एक सपना था जीवन अनिश्चित था पर मन में संशय न था तर्क-वितर्क के लिए छूटा कोई विषय न था समय जब विपरीत हुआ तब भी हममें प्रीत रहा सामंजस्य के सुर में संगीत रहा . &nb
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